विशिष्ट महानुभावों की दृष्टि में समिति
तमसो मा ज्योतिर्गमय
विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति की परिकल्पना ऊर्ध्वगामी चिंतन का परिणाम था। साधनहीन, पददलित तथा उपेक्षित बालक-बालिकाओं का अज्ञान के अंधकार से उद्धार कर उन्हें ज्ञान की ज्योति से जगमग करने में "तमसो मा ज्योतिर्गमय" की वैदिक प्रार्थना साकार हो उठी है। पता नहीं, गत वर्षों में कितने वंचित तथा विपन्न छात्र-छात्राएं समिति की उदारता का सोपान चढ़कर आज उच्च पदों पर आसीन है। जो समाज कंटक बन सकते थे, वे आज समाज का श्रृंगार है और देश की प्रगति में योगदान करने का पुण्य अर्जित कर रहे हैं समाज के सक्रिय सहयोग का पाथेय पाकर समिति निरंतर नए कीर्तिमान स्थापित करती रहे यही मेरी कामना है|
वेबसाइट से समिति की गतिविधियों तथा उपलब्धियों को अभिनव आयाम मिलेंगे

डॉ. सत्यव्रत वर्मा
पूर्व प्राचार्य, मानद प्रोफेसर
श्रीगंगानगर

लोक जाग्रति की प्रेरक
विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति श्रीगंगानगर की सुचिंतित कार्यप्रणाली व इसके द्वारा संपन्न अभावग्रस्त किंतु होनहार नौनिहालों को शिक्षा हेतु आर्थिक सहयोग एक ऐसा उत्कृष्ट शैक्षिक प्रकल्प है जो अब तक 29-30 वर्षों में अत्यधिक सार्थक और सुखद परिणाम वाला सिद्ध हुआ है| यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सहस्त्रों घरों के बुझते चिरागों में नव आलोक की मधुमय आभा के प्रसार से अदम्य साहस, उत्साह और उत्तरोत्तर जीवनपथ में अभ्युत्थान का उल्लासमय पथ प्रशस्त हुआ है। इतने लंबे समय तक जन सहयोग से संचालित होने वाली संस्थाओं में लोगों के विश्वास और उत्तरोत्तर अधिकाधिक योगदान करने की प्रवृत्ति से समिति प्रबंधन की ईमानदारी और पारदर्शिता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। यह कितना सुखद है कि आज हजारों निर्धन छात्र समिति के मार्गदर्शन व आर्थिक संबल से देश-विदेश में विभिन्न उच्च पदों पर कार्य करते हुए अपने परिवार व सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। उक्त समिति का यह परम प्रेरणास्पद आयाम जिला प्रांत और राष्ट्र की सीमाओं से परे वैश्विक पटल पर एक अनुकरणीय व आदर्श सामाजिक सेवा का सम्माननीय स्थान प्राप्त कर चुका है तभी तो समिति के स्तंभ सचिव प्रो.एस.एस माहेश्वरी को कृतज्ञ राष्ट्र "पद्मश्री" की उपाधि से समलंकृत कर चुका है किसी भी राष्ट्र या मानवता के उत्थान में मूल्यपरक शिक्षा और कर्तव्यनिष्ठा का योगदान सदैव सर्वत्र मान्य रहा है। मेरी हार्दिक आकांक्षा है कि विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति अपने लक्ष्य प्राप्ति में सदैव अग्रसर हो लोक जागृति का मनोरम दृष्टांत बने।

डॉ. कुंज बिहारी पाण्डेय
पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, श्रीगंगानगर

शुभकामना संदेश
आदरणीय माहेश्वरी जी,
विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति न केवल जरूरतमंदों का शैक्षणिक विकास कर उन्हें आत्म निर्भर बना रही है। बल्कि आधुनिक तकनीक के साथ भी सामंजस्य बनाये हुए है। यह अत्यधिक प्रसन्नता का विषय है।
आधुनिक विज्ञान प्रकृति के रहस्यों का साक्षात्कार जिस द्रुत गति से करवा रहा है उसके साथ सद्भावना एवं सेवा की भावना भी यदि जुड़ी रहे तो निश्चय ही यह सर्व कल्याणकारी हो सकता है।
मेरी विद्यार्थी शिक्षा समिति परिवार को इस नवीन प्रयास के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं।

कैलाशचन्द्र जैन
पूर्व आई.आर.एस अधिकारी
दिल्ली

उत्तरोत्तर सफलता की कामना
आपका पत्र प्राप्त हुआ। यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति, श्रीगंगानगर द्वारा अपनी वेबसाइट बनाई जा रही है।
किसी भी संस्था की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि उसके विभिन्न कार्यक्रमों की सूचना कितनी त्वरित गति व प्रभावी तरीके से आमजन को उपलब्ध होती है। आज के युग में इलेक्ट्रोनिक माध्यम से एवं विभिन्न प्रकार के उपकरणों के उपयोग तथा निरन्तर नई तकनीक के विकसित होने के कारण सूचनाओं का तीव्रगामी आदान-प्रदान बहुत सुलभ, सुविधाजनक व सशक्त होता जा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में इस वेबसाइट का विशेष महत्व हो जाता है।
विश्वास है कि आपकी शैक्षणिक संस्था की वेबसाइट संस्था की विभिन्न गतिविधियों यथा छात्रों की प्रवेश-प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, परीक्षा कार्यक्रमों, परिणाम, छात्रों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से वर्षभर पाठ्यक्रम से इतर संचालित होने वाली अन्य गतिविधियों जैसे खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भावी योजनाओं इत्यादि की जानकारी छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों, अन्य शैक्षणिक एंव सांस्कृतिक संस्थाओं एवं आमजन को आसानी से उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुए अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करेगी।
मैं आपकी संस्था के उपर्युक्त प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इसकी सफलता की शुभकामना करता हूँ।

एस.एस. कोठारी
न्यायाधिपति लोकायुक्त, राजस्थान

शिक्षा ही ज्योति की वाहक
अंधकार रूपी अज्ञान के कूप से बाहर निकालने वाली शिक्षा सर्वोपरि है। पुरूषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को साधती है शिक्षा। शिक्षा के समकक्ष कुछ भी नहीं। परमात्मा का दूसरा नाम है-शिक्षा । तथापि हमारे यहाँ शिक्षा प्राप्त करने का साधन सभी को उपलब्ध नहीं। अभागे एवं निर्धन बालक और उनके माता-पिता के लिए शिक्षा प्राप्त करना किसी विलासिता से कम नहीं है। ऐसी परिस्थिति में विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति जन सहयोग से अति कमजोर वर्गों को न केवल बिना किसी भेदभाव के शिक्षित करने का पुण्य कार्य कर रही है अपितु उन्हें शिक्षित करने के बाद भी उनके उद्देश्य तक पहुँचाने का कार्य भी पूरी जिम्मेदारी से करती है। संस्था आज अपना शिक्षा आलोक चहुंओर बिखेर रही है। संस्थापक पद्मश्री श्री श्याम सुन्दर माहेश्वरी इस पुनीत कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं। उनका कार्य व संस्था के उद्देश्य के प्रति समर्पण अनिवर्चनीय है। मैं संस्था की उन्नति के लिए हृदय से अभिलाषा रखता हूँ तथा उसके उत्थान के लिए शुभकामना प्रदान करता हूँ।

बृज मोहन गुप्ता
जिला न्यायाधीश (सेवानिवृत)
हाल संयुक्त सचिव लोकायुक्त राजस्थान, जयपुर

श्रेष्ठ समाज निर्माण में अहम योगदान
किसी भी समाज के सर्वांगीण विकास का सबसे मजबूत आधार होता है- शिक्षा । शिक्षा जो इंसान को सभ्य बना सके, जो रोजगार दिला सके, इंसान को एक दूसरे से जोड़ सके। ऐसी शिक्षा समाज के उन बच्चों को भी मिले जो योग्य होते हुए भी आर्थिक कारणों से वंचित रह जाते हैं। इसी उद्देश्य को लेकर संस्था की नींव डाली गई थी 1988 में पद्मश्री प्रो.श्याम सुन्दर माहेश्वरी व अन्य सहयोगियों द्वारा।
गन्दी बस्तियों में रहने वाले बच्चे, सड़क के फुटपाथ पर पलते हुए बच्चे, रेलवे की पटरियों के किनारे बसी धक्का बस्तियों में रहते हुए भीख माँग कर गुजारा करने वाले बच्चों को शिक्षा देने का जो महान कार्य श्री माहेश्वरी जी ने जिस मेहनत और आत्मीयता से किया है, उसे जानकर-देखकर मैं उन्हें शत-शत नमन करता हूँ। किसी भी संस्था को धन देना किसी भी धनपति के लिये मुश्किल कार्य नहीं है, पर घर-घर, गली-गली जाकर ऐसे बच्चों को घर से निकाल कर उन्हें शिक्षा देने के प्रयास में जो समय चाहिए इसे देना हर किसी के बस की बात नहीं है।
ऐसी संस्थायें जो बगैर किसी जाति, धर्म, लिंग के आधार पर उन बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने का कार्य करती हैं जो आर्थिक रूप से असमर्थ हो, वे ऐसी संस्थायें ही देश बनाती हैं देश को एक करती हैं। समाज में जाति-धर्म का जो विघटन है विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति जैसी विशिष्ट संस्थाओं द्वारा ही दूर किया जा सकता है।
यह एक ऐसी संस्था है जो समाज को जोड़ती है, शिक्षा का प्रसार समाज की जड़ों तक पहुँचाकर ।।

डॉ. ओ.पी.कोठारी
एम.डी.(पीडियाट्रिक्स)

सर्वश्रेष्ठ समाज सेवी संस्था
वे सभी समाज सेवी लोग एवं संस्थाएँ प्रशंसा के पात्र हैं जो समाज तथा राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में अपने-अपने तरीकों से नि:स्स्वार्थ भाव से मानव सेवा में जुटे हुए हैं। इस प्रकार की अनेक स्थानीय संस्थाएँ एवं व्यक्ति हमारे इस नगर में भी सक्रिय हैं तथा शहरवासियों को इन श्रेष्ठ व्यक्तियों द्वारा संचालित ऐसी संस्थाओं पर गर्व है।
मेरी मान्यता है कि नगर में श्रद्धा की पात्र इन समाजसेवी संस्थाओं में श्री श्यामसुन्दर जी माहेश्वरी के नेतृत्व में संचालित विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति सर्वश्रेष्ठ है। श्री माहेश्वरी जी का मिशन इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि यह समाज के आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सबसे कमजोर वर्ग के परिवार के बच्चों को शिक्षा के माध्यम से उनके सशक्तिकरण का काम कर रहे हैं। जिन परिवारों ने अपने बदहाल जीवन को नियति मान कर स्वयं के प्रयत्नों से जीवन को बेहतर बनाने का आत्म विश्वास ही खो दिया हो तथा इस श्रेणी के परिवार जो भीख माँग कर अथवा समाज के संभ्रान्त परिवार के लोगों द्वारा भूखों को खाना खिला कर पुण्य कमाने वालों का साधन बन कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं, में आशा जगाना एक अनूठा प्रयत्न है।
हम सब लोगों का दायित्व बनता है कि ऐसी उत्कृष्ट संस्था को हर तरीके से प्रोत्साहित किया जाये, जिससे भविष्य में भी यह संस्था इसी भावना तथा उत्साह से निरन्तर इस पुनीत कार्य को आगे बढ़ाती रहे।

डॉ. आर.एस पूनिया
निदेशक
आर्य शिक्षण संस्थान, श्रीगंगानगर

श्रेष्ठ बड़ा संस्थान
विद्यार्थी शिक्षा सहयोग, समिति की है नहीं मिसाल | छुपे हुए ढूंढे बहुत, हैं गुदड़ी के लाल ।।
रजत जयन्ती वर्ष है, श्रेष्ठ बडा संस्थान । अभावग्रस्त बालक जहाँ, पाते विद्यादान ।।
छोटा सा पौधा कभी, जिसकी हुई संभाल । बना आज वटवृक्ष है, लेकर रूप विशाल ।।
ओम अरोड़ा सा मिला, अध्यक्ष कभी आदर्श। 'विजन दिया था आपने, जाने कितने वर्ष।।
हरिचन्द मक्कड़ बने, वर्तमान अध्यक्ष | सेवाभावी ख्यात हैं, शिक्षाशास्त्री दक्ष ।।
श्याम सुन्दर माहेश्वरी, सचिव सुसंस्थापक। ‘पद्मश्री’ से अलंकृत, सेवारत अब तक।।
भागदौड़ है आपकी, रहे समर्पित नित्य। आप बोलते हैं नहीं, बोल रहे हैं कृत्य ।।
दान हेतु आते यहाँ, दूर-दूर से लोग । तन-मन-धन से दे रहे, संस्था को सहयोग ।।
समिति का सहयोग पा, पढ़े बहुत से छात्र। बने डॉक्टर, इंजीनियर, जज, शिक्षक सदपात्र।।
वार्षिकोत्सव का करें, सभी यहाँ गुणगान । मेधावी विद्यार्थी, पाते हैं सम्मान ।।
मुख्य अतिथि आते यहाँ, नरपुंगव वे वीर। स्वावलम्ब के क्षेत्र में, जो हैं एक नज़ीर ।।
दीनहीन बालक बहुत, साधन जिनके अल्प । विद्यालय में पढ़ रहे, हुआ है कायाकल्प ।।
भवन सुहाना है बड़ा, व्यापक कमरे हॉल । लाईब्रेरी भी बनी, इसमे बहुत विशाल ।।
ताराचन्द और
सुच्चासिंह, मान्य श्री आदूराम । तीनों गुरू आदर्श हैं, स्मरण करें सब नाम ।।
इनकी स्मृति में दे रहे, पुरस्कार प्रतिवर्ष । शिक्षक पाते सम्मान वे, जिनने छुआ है अर्श ।।
दो बार है छप चुकी, हैलो प्रोफेसर’। ‘मार्गदर्शिका’ भी हुई, लोकार्पित छप कर ।।
अंचल की यह है बड़ी, संस्था एक अनूप। ईश्वर से यह विनय है, और भी निखरे रूप ।।

डॉ. विद्या सागर शर्मा
पूर्व उपप्राचार्य
श्रीगंगानगर

मानव सेवा का श्रेष्ठ संस्थान
‘विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति’ जैसा नाम है उससे कहीं अधिक बड़़ा इसका काम है। यह समिति शिक्षा, सेवा, दान, समर्पण तथा परोपकार का महतम केन्द्र है। कई वर्षों तक श्रीगंगानगर में वसे रहने के बावजूद भी मै इस पुनीत संस्था से बरसों दूर रहा और इसको प्रत्यक्ष दर्शन नहीं कर पाया, लेकिन समिति द्वारा की जा रही शिक्षा सेवा के सफलतम उदाहरण मेरे समक्ष बार- बार आते रहे और संस्था के प्रति मेरी सद्भावना एवं विश्वास दृढ़ होता गया । लगभग पांच वर्ष पूर्व मेरे सुकृतों का उदय हुआ तथा परम सौभाग्य से मुझे इस समिति के संस्थापक -सचिव प्रो. श्याम सुन्दर माहेश्वरी से साक्षात्कार करने का सुअवसर प्राप्त हुआ । प्रो. माहेश्वरी ने युवावस्था में ही परोपकार को धर्म के रूप में अंगीकार किया और समाज के निचले तबके को ऊपर उठाने का मानस बनाया। इन्होंने झुग्गी-झोपडी, कोढी बस्ती, रेलवे लाइन, फुटपाथ आदि पर अपना जीवन यापन करने वाले परिवारों एवं रेहडी, रिक्शा चलाकर, बोझा उठाकर मजदूरी से जीवन यापन करने वाले परिवारों के विद्यार्थियों को शिक्षित कर समाज में सम्मान पूर्वक जीवन यापन करने वाले परिवारों के विद्यार्थियों को शिक्षित कर समाज में सम्मान पूर्वक जीवन जीने के योग्य बनाने का संकल्प लिया। वे पिछले 30 वर्षों से अनवरत अपने संकल्प को साधने में लगे हुए हैं । इनके सेवापरायण, सरल, विनम्र एवं परोपकार के फलस्वरूप आज समिति के हजारों विद्यार्थी अपनी पहचान बनाने में सफल हो चुके हैं। प्रो. माहेश्वरी जैसे शिक्षा संत सेे मिलकर मेरे जीवन का द्वितीय चरण शुरू हुआ और मुझे भी समिति से जुडने का सौभाग्य मिला। यह संस्था वस्तुतः शिक्षा के लिए ही समर्पित नहीं है, बल्कि यहां पर नीति, मूल्य, कर्तव्य तथा संस्कारों का भी बीजारोपण एवं संवर्धन होता है। समिति विद्यालय के शिक्षकों में अपनत्व, स्नेह और पूर्णनिष्ठाभाव से कर्तव्य की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई पडती है। विद्यालय में आने वाले आगतुकों के साथ शिष्टाचार पूर्वक इनका व्यवहार और सहयोग अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करता है। विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति की एक अनूठी बात यह भी है कि समिति को दान रूवरूप प्राप्त होने वाली धनराशि का एक-एक पैसा विद्यार्थियों की शिक्षा हेतु ही व्यय किया जाता है तथा शिक्षा के इतर किसी भी कार्य के लिए इस धन राशि का उपयोग नहीं किया जाता । समिति अथवा विद्यालय में होने वाले विभिन्न आयोजन, कार्यक्रम अथवा गतिविधियां भी विभिन्न दानदाताओं द्वारा प्रायोजित होती हैं।
वस्तुतः समाज के सक्षम वर्ग द्वारा असक्षम वर्ग के विद्यार्थियों के जीवन को समुन्नत करने का माध्यम है यह समिति। इससे जुडा प्रत्येक व्यक्ति, कार्यकर्ता तथा दानदाता राष्ट्र के विकास का अहम हिस्सा है। समिति के अध्यक्ष आदरणीय श्री हरिचन्द्र मक्कड ने अपनी ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण से इस समिति को सींचा है। अतः हम सब समाजहित साधकों का यह दायित्व है कि समिति द्वारा लगाये गये इस ‘पारिजात’ की सौरभ सर्वत्र प्रसारित करने में भागीदार बनें। सद्भावनाओं सहित !

आर.एस. सोढ़़ा
पूर्व कृषि अनुसंधान अधिकारी, श्रीगंगानगर(राज.)

Dedicated to a Noble Cause
The Vidyarthi shiksha Sahyog Samiti (Society for the promotion of education) owes its genesis to the humane thinking of a band of dedicated educationists and social workers. Fired with a zeal to save the down tradden segments of the society from the curse of depravity and backwardness they launched upon a massive campaign to identify such neglected children, Who despite their talent could hardly dream of entering the portals of an educational institution. In dispelling the darkness of ignorance from their lives and illuminating them with the moonshine of education they have translated into action the great vedic prayer" Tamso Ma Jyotir Gamaya " (from darkness lead me light) with a measure of glee. It is hard to keep track of the number of students who have made their mark in such rewarding professions as medical science, engineering education judiciary civil and administrative services under the benign patronage of the society. Those who could have been written off as non-entities have turned out to be the pride of the nation making valuable contribution to its welfare.
With the liberal patrenage of the philanthropists spread across the globe, the society is destined to scale greater heights in serving the noble cause of education which forms the backbone of the society. The website created by the society is sure is impart new horizons to the plethora of its activities and achievements.

Dr. Satya Vrat Varma
Ex-Principal, Professor
Sri Ganganagar (Raj.)

Helping the Economically Weaker Talents
Founded on 23rd October, 1988 by Prof. S.S. Maheswari alongwith some like minded persons, the Vidyarthi Shiksha Sahyog Sammittee aims at imparting free education to boys and girls who come from the lower strata of society by inspiring and seeking financial and philanthropic contribution.
During the last 30 years of its existence the V.S.S.S. has done a commendable job, facilitating free education from primary to higher classes to as many as about 7500 students. The activities of the sammittee are currently confined to such students of the society who has got talent but failed to receive proper quality education simply because their guardians cannot afford the high cost of education.
The Sammittee is rendering commendable services to society by enlisting volunteer support and financial assistance from the well to do sections of society. Monthly, quarterly, half yearly, yearly and long life contributions are given to the sammittee by the donors towards meeting the needs of talented but needy students.
The Sammittee plans to expand its area of operation to other parts of Rajasthan. If the present tempo of the sammittee continues to gain momentum the sammittee hopes to expand its operation at national level.
