विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति

विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति (रजि.)

शिक्षा व बाल उत्थान हेतु समर्पित

विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति
स्थापित 1988
रजिस्ट्रेशन नंबर 99/90-91

समिति द्वारा पोषित और पल्लवित विद्यार्थियों के विचार

वो खुदा तो नहीं, मगर खुदा का अक्स तो है

मैं, विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के सहयोग से पढ़ा हुआ विद्यार्थी हूँ। मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। मेरे माता-पिता ने मेहनत करके 12 वीं तक जैसे-तैसे मुझे पढ़ाया लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास खर्चा नहीं था। मैं बहुत दुखी हो गया क्योंकि मैं आगे पढ़ना चाहता था लेकिन मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। तब किसी ने मुझे विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के बारे में बताया। उस समय पूज्य गुरुजी प्रो. माहेश्वरी जी ने कहा तुम आगे पढ़ाई जारी रखो हम जितना हो सका तुम्हारी मदद करेगें। मैंने पी.एम.टी. की परीक्षा दी। लेकिन प्रथम प्रयास में दुर्भाग्यवश चयन से मैं 3-4 अंकों से वंचित रह गया। मैं बहुत निराश हो गया था और पढ़ाई छोड़कर घर जाने की सोच ली थी उस निराशा की घड़ी मे पूज्य गुरुजी ने मेरा कैरियर बर्बाद होने से बचा लिया। उन्होंने मुझे समझाया कि निराश मत हो, एक बार फिर से तैयारी में जुट जाओ, ईश्वर ने चाहा तो इस बार तुम्हारा चयन हो जाएगा, हिम्मत से काम लो। उनके ये शब्द कि ‘मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं' मुझे आज भी याद हैं और हमेशा मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगें। उनके आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से अगली बार मेरा पी.एम.टी. में चयन हो गया। पूरी एम बी.बी.एस के दौरान फीस, किताबें, पढ़ाई का खर्चा आदि हर तरह की सहायता मुझे विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति से मिलती रही। गुरुजी के द्वारा समय-समय पर मार्गदर्शन मिलता रहा तथा आशा है कि इसी तरह मिलता रहेगा। वे हमेशा हर बच्चे को न केवल अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए कहते हैं बल्कि एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं। एक पिता की भाँति पैसे एवं समय के सदुपयोग की हिदायतें वे हमें हमेशा देते हैं। उनका कहना था ‘बेटा ये पैसा दानदाताओं की बड़ी कठोर मेहनत का है इसका अधिक सदुपयोग करना हमारी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी तथा नैतिक कर्तव्य है। आज की भाग दौड़ की ज़िन्दगी में जहाँ किसी के लिए एक मिनट का समय निकालना मुश्किल हो जाता है वही प्रो. माहेश्वरी जी ने अपना पूरा जीवन आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए समर्पित कर दिया है।

डॉ. बलराम जलंधरा
श्री तारा बाबा चैरिटेबल नेत्र चिकित्सालय
सिरसा (हरियाणा)

आज मैं उनके आशीर्वाद से और विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति एवं उसके दानदाताओं के सहयोग से एस.एम.एस. हॉस्पीटल, जयपुर से अपनी एम.एस. (नेत्र) की डिग्री पूरी करके श्री बाबा तारा चैरिटेबल नेत्र चिकित्सालय, सिरसा (हरियाणा) में मुख्य नेत्र चिकित्सक के पद पर कार्यरत हूँ। आज मैं विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति का सदस्य हूँ तथा दानदाता भी हूँ। ईश्वर से मैं यही प्रार्थना करूंगा कि मैं इसी तरह बल्कि इससे भी अधिक इस संस्था तथा समाज की भलाई करता रहूँ।
आदरणीय प्रो. माहेश्वरी जी के लिए मैं तो यही कहना चाहूँगा कि

इस कदर साथ कोई शख्स तो है
वो खुदा तो नहीं, मगर खुदा का अक्स तो है।

मेरे जीवन में समिति की भूमिका

मेरे जीवन में वि.शि.स.समिति का परिचय एक ईश्वरीय वरदान के रूप में हुआ। माँ शारदा की असीम कृपा मुझ पर बरसने लगी। मैं एक अति सामान्य परिवार से था। पिताजी की सामान्य सी आमदनी में घर चलाना बहुत मुश्किल होता था। तब मैं 10 वीं कक्षा का छात्र था, मन करता था पढ़ाई छोड़ कर कुछ काम-धन्धा कर लुं ... पढ़ना चाहता था पर अँधेरा ही नजर आता था। लेकिन पिताजी चाहते थे कि मैं आगे पढ़ाई करूं और कुछ बन जाऊँ जिससे भविष्य सुधर जाये। तभी मेरे एक शिक्षक महोदय ने मुझे समिति के बारे में बताया। मेरे आर्थिक हालात और शैक्षणिक स्तर को देखकर संस्था ने मुझे आर्थिक योगदान तथा स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन दिया। हालांकि उन दिनों संस्था के पास साधन बहुत सीमित होते थे फिर भी श्री माहेश्वरी जी एवं मक्कड़ साहब हमारी सभी जरूरतों को तुरन्त पूरी कर देते थे, जाने कौन सा ईश्वरीय खजाना है उनके पास। जब मेरा बी.एड. में चयन हुआ तो फीस जमा करवाने के पैसे भी नहीं थे लेकिन ये संभव हुआ वि.शि.स. समिति के सहयोग से। श्री माहेश्वरी जी का मंत्र है 'कर्म ही पूजा है। उनकी दिनचर्या और काम के प्रति समर्पण देखकर हम सभी विद्यार्थी प्रेरित होते रहे और लगातार अपने शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अथवा परिश्रम में लग जाते। आज उनके सहयोग, मार्गदर्शन और आशीर्वाद का ही परिणाम है कि मैं एक सम्मानजनक पद पर पहूँच पाया हूँ। आज मैं ऋणी हूँ संस्था का, श्री माहेश्वरी जी का और समस्त गुरुजन एवं दानदाताओं का जो मानव सेवा को प्रभु सेवा मान कर निरन्तर कार्य किये जा रहे हैं। विद्यार्थियों हेतु ये पंक्तियाँ

हो कर मायूस यूं न शाम से ढलते रहिये।
जिन्दगी भोर है, सूरज की तरह निकलते रहिये।


श्याम सुन्दर सिंह राणा
व्याख्याता, रा.उ.मा. विद्यालय
58 एफ., श्री करणपुर

किस्मत का नगमा

किस्मत ने एक नगमा लिखा है
कहते हैं-कोई आज रात को
वही नगमा गाएगा.........
कल्पवृक्ष की छाँव में बैठकर
कामधेनु के छलकते दूध से
किसकी दोहनी भर पाई है.
पर हवा की आहें अब कौन सुने
चलूँ कि आज मुझे-तकदीर बुलाने आई है.....

इन पंक्तियों को पढ़कर याद आने लगे हैं वो पल जिनको हम पीछे छोड़ चले हैं। याद आने लगे हैं वो लम्हें जिनको हम भुला कर भी नहीं भूल पाएँगें क्योंकि वो हमारी आत्मा में रच बस गए हैं। याद आने लगे वो क्षण जब हमें तकदीर बुलाने को आई थी। वो दिन था- 23 अक्टूबर, 1988 विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति का स्थापना दिवस समिति इस दिन मेरे लिए एक सुन्दर नगमा बनकर आई जब आर्थिक तंगी के कारण मेरी पढ़ाई-लिखाई का खर्चा चलाना काफी मुश्किल हो रहा था।

राज कुमार डायल
एम.ए. (संस्कृत), बी.एड.
अध्यापक : केन्द्रीय विद्यालय, श्रीगंगानगर

पिताजी की बेरोजगारी तथा माँ द्वारा दिन-रात काम करके हम पाँचों भाई-बहिनों की पढ़ाई का खर्च वहन करना मन को पीड़ा तो देता ही साथ ही उच्च समाज के प्रति निम्न स्तर की विचार धाराएँ भी उत्पन्न हो रही थी। मुझे लग रहा था कि मैं अपनी पढ़ाई कभी जारी नहीं रख पाऊँगा। लेकिन तभी हमारे विद्यालय (एस.डी बड़ा मन्दिर) के संगीत अध्यापक मोहन लाल जी शर्मा ने मुझे एक ऐसे व्यक्ति से मिलाया जो दिखने में तो एक आम इंसान थे, लेकिन किसी देवदूत से कम नहीं थे। शायद इसलिए ही
दर्दे-दिल मिटाने को पैदा किया इंसान को ।
वरना फरिश्ते कम ना थे उस भगवान को ।।
उन्होंने मेरा परिचय पूछा घर-बार की स्थिति तथा परिस्थितियों के बारे में चर्चा की और एक फार्म मरने को दिया। जिसने मेरे जीवन में एक नई रोशनी भर दी, एक ऊर्जा विकसित हुई। यह फार्म था विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति का और वह व्यक्ति थे-प्रो. श्याम सुन्दर माहेश्वरी।
वह घड़ी जब कक्षा 6 वीं का नन्हा सा राजकुमार डायल इनके सम्पर्क में आया और अब यही राजकुमार डायल एम.ए.(संस्कृत) बी.एड. करने के बाद केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापक के रूप में पदस्थापित है तथा समिति का सम्मानित सदस्य है| साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा संस्कृत प्रचार-प्रसार हेतु दो वर्ष कार्य भी कर चुका है।
विद्वानों से सुना था जो बीत गया उसे छोड़ो आगे की सोचो लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूँ क्योंकि मैं बीते हुए को त्यागकर आगे दो कदम भी नहीं बढ़ पाऊँगा। मेरा अतीत तो मेरी नींव है-चाहे वह दिखाई न दे लेकिन उस पर खड़ा भवन तो दिखाई देता ही है, और इस भवन का आधार बनी-विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति। मैं इस संस्था के उद्देश्य, कार्य अथवा इतिहास पर कोई लेख या टिप्पणी नहीं लिखना चाहता क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो इसके विषय में नहीं जानता। विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति मेरे लिए कुछ व्यक्तियों द्वारा चुनी गई कोई संस्था नहीं अपितु मेरी आत्मिक चेतना का, आगे बढ़ने का आधार स्तम्भ है तथा अंधेरे में रोशनी दिखाने वाला निरन्तर जलने वाला दीपक है। निरन्तर जलने वाला इसलिए क्योंकि दीपक जलाना बहुत आसान है लेकिन उसे जलाए रखना बहुत मुश्किल। समिति द्वारा हजारों विद्यार्थियों को उन क्षणों में अपूर्व स्नेह, सहयोग, प्रोत्साहन मिला जब वे अंधेरी गलियों में अपने भविष्य को तलाश रहे थे। लेकिन इस निरन्तर जलने वाले दीपक के द्वारा उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली ठीक इस तरह
सन्ध्या कुछ गहरा रही थी
वो रेत के टीले पर बैठा रहा
और अंधेरे के धागे
कुछ उधेड़ता बुनता रहा…………
फिर दूर स्याह आसमानों में
एक तारा चमक उठा
बूंद-बूंद रोशनी गिरती रही
और वही रोशनी के कतरे
वो बदन पर मलता रहा…………

इस रोशनी के कतरे न जाने कितने ऐसे विद्यार्थी बीन रहे हैं जो धनाभाव के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर थे।
यदि इन सबको सही समय पर समिति ने सहारा न दिया होता तो शायद डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, बैंक कर्मचारी, वकील, जज, कम्प्यूटर ऑप्रेटर बनने के बजाय वे समाज के विकास में बाधक तत्व के रूप में होते।
लेकिन कभी-कभी सोचता हूँ गंगानगर जिले से दूर-दराज में रहने वाले अन्य शहर के आर्थिक दृष्टि से गरीब, प्रतिभा से अमीर छात्रों का क्या होता होगा? यही है हमारे समक्ष एक गम्भीर प्रश्न तथा आवश्यकता है एक और सार्थक प्रयास की। यह प्रयास तभी सार्थक एवं फलीभूत होगा जब हर नगर में प्रो. श्यामसुन्दर माहेश्वरी जैसे भगीरथ जन्म लें । मैं इनको भगीरथ इसलिए कहता हूँ क्योंकि भगीरथ गंगा इस धरती पर स्वयं के लिए नहीं लाए थे बल्कि युगों-युगों तक लोग उससे अपने तन-मन प्यास बुझाते रहेंगे। इसी तरह प्रो. माहेश्वरी ने समिति का निर्माण अपने लिए नहीं किया, बल्कि हजारों अभावग्रस्त विद्यार्थी इससे लाभान्वित होते रहेंगे। अन्त में -
भारत की सुन्दरता के प्रतीक हैं-नदी, वन, पर्वत, और झरने।
वास्तव में यही तो है भारत भूमि के गहने ।।
किन्तु लोग उस रेगिस्तान को क्यों भूल जाते हैं
जो हजारों वर्षों से लोगों की ईष्र्या को सह रहे हैं।
इनके आँसू भी पानी नहीं, भाप बनकर बह रहे हैं। इस इलाके का रोता दिल हमेशा यही गाता है
हम भी तो इस भारत-भूमि के अंग हैं। फर्क सिर्फ इतना प्रोत्साहन रूपी पानी से नंग हैं।।
हमारे यहाँ भी हो सकती है लहलहाती फसलें, फल-फूल और घने वृक्ष ।
यदि कोई हो हमको भी थोड़ा पानी देने में दक्ष ।।
अब कौन भगीरथ बनकर हमारा उद्धार करेगा?
रेगिस्तान की इस पीड़ा को, बादलों का समूह सुन रहा था।
यहाँ बहने का क्या फायदा, समूह यह सोच रहा था ।।
किन्तु एक छोटे से बादल ने वहीं बरसने का फैसला किया।
दूसरों के लिए जियो, अपने लिए जिया तो क्या जिया ||
उस भू-भाग पर बरसते हुए बादल का यही था इरादा।।
समुद्र पर बादल बरसे तो इसका क्या फायदा ।।
बादल के सहयोग पर रेगिस्तान बहुत खुश हो रहा था।
यकीन मानिए रंग बिरंगे फूलों-फलों से फल-फूल रहा था ।।
विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति एक छोटा सा बादल है, कहाँ–कहाँ बरसे जबकि पूरा संसार प्यासा है। हे, गंगानगरवासियों उमड़-घुमड़ों और बरसो तुम्हीं से पूरी आशा है, तुम्हीं से पूरी आशा है।

एक भागीरथी प्रयास….

मेरा जन्म 1971 में श्रीगंगानगर में एक सामान्य परिवार में हुआ। पिता राजस्थान रोड़वेज में कर्मचारी थे तथा माता एक गृहिणी। प्रारम्भिक लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार से हुआ। पिता की अति शराब पीने की आदत से 1985 में उनका देहान्त हो गया। देहान्त से पूर्व पिताजी नौकरी भी छोड़ चुके थे। ऐसी स्थिति में मेरा परिवार बड़ी आर्थिक तंगी की स्थिति में आ गया था। छोटे भाई और मेरी पढ़ाई तो दूर की बात हमारा परिवार चलाना भी बड़ा कठिन हो गया था, किन्तु हमने हिम्मत नहीं हारी | हमने अपने गुरुजी श्री धर्मपाल धुन्ना तथा राज न्यूज एजेन्सी के मालिक श्री सतीश थरेजा की मदद से दैनिक सीमा किरण में अखबार बाँटने का काम प्राप्त किया तथा इन्हीं के सहयोग से कुछ समय बाद दैनिक सीमा संदेश से भी अखबार बाँटने का काम प्राप्त किया। इन स्रोतों से प्राप्त आय भी बहुत सीमित थी ऐसी स्थिति में श्री सतीश थरेजा ने मुझे दैनिक सीमा संदेश में रात को प्रिंटिंग मशीन के हैल्पर के रूप में कार्य दिलवा दिया। जैसे-तैसे कर के मैंने 11 वीं कक्षा उत्तीर्ण की। 1987 में राजकीय महाविद्यालय, श्री गंगानगर में बी.ए. प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया | लेकिन आर्थिक तंगी व समयाभाव के कारण बी.ए. नियमित करने की बजाय स्वयंपाठी छात्र के रूप में करने का मन बनाने लगा। मैं बहुत कशमकश में था। ऐसी स्थिति में मैंने एक दिन कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को शिक्षा हेतु आर्थिक सहयोग दिए जाने के सम्बन्ध में आवेदन करने के बारे में पढ़ा। मेरे मन में शंका थी कि क्या यह संभव है कि कोई ऐसी संस्था होगी जो निस्स्वार्थ व ईमानदारी से किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता करे जिसको कि वास्तव में आर्थिक मदद की जरूरत हो क्योंकि हमारा भ्रष्ट तंत्र इस बात पर यकीन करने की अनुमति नहीं देता। किंतु मैंने एक अवसर लेते हुए इस संस्था में छात्रवृति हेतु आवेदन कर दिया। उस समय मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के सचिव श्री श्यामसुन्दर माहेश्वरी जी ने मुझसे सम्पर्क किया और बताया कि मेरे द्वारा प्रस्तुत आवेदन-पत्र की तस्दीक करने व वास्तविक स्थिति को जानने के बाद मुझे सहायता दे सकेंगे।

अनिल कुमार सेवदा
व्याख्याता, अर्थशास्त्र रा.उ.मा.वि.
नोहर, जिला-हनुमानगढ़ मो. 94149-55106

समस्त तथ्यों की जानकारी प्राप्त कर समिति ने मुझे आर्थिक सहयोग प्रदान करने का निर्णय लिया। समिति ने मेरी शिक्षा की समस्त जिम्मेवारी वहन की तथा मुझे अध्ययन हेतु समस्त किताबें, कॉपियाँ व शुल्क आदि की व्यवस्था की। समिति के सहयोग से मैंने 1992 में प्रथम श्रेणी से एम.ए. अर्थशास्त्र की परीक्षा पास की। 1992 में मेरा बी.एड. में प्रवेश हेतु चयन हुआ। उस समय श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ के एक मात्र (पुरुषों के लिए) शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय ग्रामोत्थान शिक्षक प्रशिक्षक महाविद्यालय, संगरिया ने मुझे महाविद्यालय शुल्क तथा छात्रावास शुल्क के रूप में 5500/-रुपये जमा करवाने के लिए कहा। इतनी बड़ी राशि का प्रबन्ध करना मेरे बूते से बाहर की बात थी। किन्तु विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति ने राशि जमा करवाई और मैंने 1994 में प्रथम श्रेणी से बी.एड. परीक्षा उतीर्ण कर ली। पढ़ाई के दौरान ही मैंने अनुभव किया कि वर्तमान में रोजगार की समस्या गम्भीर है तो मैंने कोई तकनीकी कार्य सीखने का निर्णय किया। इस पर मैंने अपने गुरु भोपालवाला आर्य हायर सैकण्डरी स्कूल के प्रधानाचार्य श्री राजाराम बिश्नोई तथा विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के सचिव पद्मश्री श्री श्यामसुन्दर माहेश्वरी जी से बात की, कि मैं पैथोलॉजी लैब में लैब टैक्नीशियन का काम सीखना चाहता हूँ तो उन्होंने मुझे टण्डन पैथोलॉजी लैब के संचालक श्री सुशील कुमार टंडन से बात कर वहाँ पर कार्य सीखने के लिए लगाया तथा आर्थिक मदद के लिए मुझे कुछ प्राइवेट ट्यूशन भी दिलवाई। बी.एड. करने के पश्चात दिसम्बर 1994 में मेरी नियुक्ति अध्यापक (तृतीय श्रेणी) पद पर हुई तथा 1997 में मैंने राजस्थान लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित होकर व्याख्याता अर्थशास्त्र (स्कूल शिक्षा) के पद पर कार्य ग्रहण किया । वर्तमान में मैं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय नोहर, जिला-हनुमानगढ़ में कार्यरत हूँ। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि भगवान् समाज के लोगों को इस प्रकार की प्ररेणा दे कि वे विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति की भांती प्रयास करें और समाज के वंचित लोगों को मुख्य धारा से जोड़ें।

एक फरिश्ते का मिलना

बस 11 साल की ही उम्र थी कि पिताजी का देहान्त हो गया। हालांकि हमारा परिवार तो छोटा ही था फिर भी तीन भाई-बहन और माँ पर गुजर-बसर का कोई जरिया नहीं था। पिताजी चिनाई के मिस्त्री थे इसलिए ना तो खेती की कोई आमदनी थी और ना ही कोई पेन्शन बड़े भाईसाहब की उम्र भी सिर्फ चौदह साल ही थी। नौवीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर प्राईवेट नौकरी से परिवार का पेट पालना शुरू किया और मुझे आगे बढ़ने का मौका दिया। हर साल जैसे ही परीक्षा परिणाम निकलता मेरी पढ़ने की लग्न दोगुनी हो जाती पर घर के हालात कुछ और ही ईशारा करते।पढ़ाई के साथ कभी लिफाफे बनाकर बेचे तो कभी सब्जी की रेहड़ी भी लगाई। कभी मन किया कोई काम ही सीख लूँ, पढ़ाई का क्या, कैसे भी हो जाएगी जीपों की डेन्टिग का काम सीखना शुरू किया। वेल्डिंग से हाथ जल जाता कई बार आँखों में वेल्डिंग की चमक पड़ जाती तो सूजन की वजह से रात को बड़ी मुश्किल से नींद आती। 15 साल की उम्र होते ही दसवीं कक्षा का परिणाम आया। पूरे वर्ष आरक्षण की हड़ताल होने से मुश्किल से दो महीने की पढ़ाई हुई थी। राजकीय मल्टीपर्पज सीनियर सैकेण्डरी स्कूल में पढ़कर प्रथम श्रेणी से दसवीं कक्षा पास की। पर अब आगे पढ़ाई की बजाय कोई काम करना ही जरूरी लग रहा था। शायद इस बार किसी फरिश्ते से मिलना किस्मत में लिखा था। पड़ोस में भारतीय जीवन बीमा निगम के अधिकारी श्री विजय सिंह गडाई बहुत ही नेकदिल इंसान रहते थे जो मेरे हालात से भली-भाँति परिचित थे। उन्होंने ही मुझे विद्यार्थी शिक्षा। सहयोग समिति' के संस्थापक-सचिव श्री श्यामसुन्दर माहेश्वरी जी जैसे फरिश्ते से मिलवाया। इन्होंने बस एक नजर मेरी मार्कशीट पर डाली और पीठ थपथपा दी। आगे की पढ़ाई के लिए हर एक जरूरत का ज़िम्मा इन्होंने उठाया। 11वीं कॉमर्स में एडमिशन और टाईपिंग की सलाह भी इन्होंने ही दी। पुस्तकें, कापियाँ, पेन, जूते, जुराब, स्वेटर सब कुछ यहाँ तक कि खुद ने अलग से पढ़ाया भी। बस बीस साल का होने तक ही पढ़ पाया था कि माहेश्वरी सर की सलाह ने अपना असर दिखा दिया।

श्याम सुंदर बिश्नोई
रीडर, जिला न्यायालय
श्रीगंगानगर
पूर्व जिला अध्यक्ष राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ श्रीगंगानगर

न्यायालय में लिपिकों की भर्ती निकली। तैयारी की और टाइपिंग तो पहले से आती थी हो, मुझे नौकरी मिल गई। सरकारी नौकरी से घर के हालात सुधरने शुरू हुए और सुधरते हो गये| आज महसूस करता हूँ कि कोई भी काम सीखना शुरू करता तो शायद इतनी जल्दी ज़िन्दगी नहीं बदलती। अब भी कई बार माहेश्वरी सर के पास बैठने का मौका मिलता है तो अकसर कह देता हूँ कि सर भगवान ने आपको जादू बक्शा है। विद्यार्थी तो आपके पास अनगिनत आते हैं पर आप झट से उनकी जरूरत समझ जाते हैं। आपका बोला शब्द ही हमारे लिए जादू का सा असर लाता है वरना कौन जानता था कि मुझे आगे पढ़ना भी है या नहीं और पढ़ना भी है तो क्या।
मैं हमेशा विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति और माहेश्वरी सर के प्रति कृतज्ञ रहूँगा, जिन्होंने मेरे मायूस हालातों को सुखी जीवन का अभास करवाया।
धन्यवाद ।

ऋणी हूं मैं

सहयोग और आशीर्वाद से कई ज़िन्दगियाँ तराशी जा सकती हैं। इसकी जीवित प्रतिमूर्ति के रूप में मैं हरिओम सोनी सॉफ्टवेयर इंजीनियर आपके समक्ष हूँ। रोटी-कपड़ा-मकान जो एक मध्यमवर्गीय परिवार की आवश्यकताएँ होती हैं और सारे भौतिक संसाधन जो जीवन को सरल बनाते हैं आज मेरे पास हैं। ईश्वर के आशीर्वाद से दो जरूरतमंदों की मदद करने में समर्थ हूँ। मुझे सहारा मिला आज खुद सहारा हूँ। पल्लवित हूँ। अपनी छाँव के तले उन सभी परिन्दों को पनाह, सहयोग देना चाहता हूँ, ठीक वैसे ही जैसे विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के बरगद तले एक दिन मुझे मिला था।
मुझे ठीक तरह से याद है कि मेरे उज्ज्वल भविष्य निर्माण के सपने संजोए मेरे माता-पिता ने मेरा दाखिला श्रीगंगानगर के सबसे आदर्श विद्यालय आर्य स्कूल में 8वीं कक्षा में करवाया परन्तु जल्दी ही उनकी उनकी आशाओं पर तुषारापात हुआ उन्हें पता लग चुका था कि जिस गरीब परिवार में पांच पेट हो वह उच्च विद्यालय शुल्क अदा करने में असमर्थ होता है। मेरी शिक्षा एक सोने का लड्डू बन चुकी थी। जिससे भूख मिटायी नहीं जा सकती थी। पिताजी का चेहरा मेहनत से पक चुका था। माँ मन के अन्दर की टीस को छुपाए मेरे सामने आने पर मुस्कुरा देती थी। पर गरीब बच्चा जल्दी बड़ा हो जाता है। मैं सब समझता था जहाँ चाह वहाँ राह संकट के बादलों से घिरी हमारी ज़िन्दगी की कश्ती को एक नये किनारे की आस लगी।
विद्यालय के कुछ बच्चे 'विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति' द्वारा सहयोग प्राप्त कर रहे थे। मेरे मन में भी उमंग जागी मैं बड़ी आशा लेकर समिति के सचिव महोदय प्रो श्याम सुन्दर माहेश्वरी से मिला उनके परीक्षण शब्द मेरे कानों को आज भी झन्कृत करते हैं।

हरि ओम सोनी
सॉफ्टवेयर इंजीनियर
गुड़गाँव

यदि XI कक्षा में 60% अंक लाओगे तभी। संस्था आपको सहयोग देगी। मैंने दृढ़ निश्चय, लगन से 66% अंक प्राप्त किए। जिस कमजोर माली हालत के चलते बच्चे शिक्षा जगत् में , ज्ञानार्जन को छोड़ उदरपूर्ति को लक्ष्य बना लेते हैं उस बच्चे के लिए ये नम्बर 'डिस्टिंक्शन' थे। श्री निहालचन्द अरोड़ा एक दिन हमारे घर आये मेरा साक्षात्कार लिया। एक निर्धारित तिथि पर संस्था कार्यकारिणी ने मेरा साक्षात्कार लिया। मैं सफल हुआ, इस बरगद ने मुझे घौंसला बनाने हेतु आश्रय दे दिया। पहले ही दिन मुझे किताबें और रजिस्टर मिल चुके थे। मेरी स्कूल की फीस संस्था ने दी, शाला गणवेश पहनाकर समिति ने एक सरस्वती-पुत्र को जन्म दिया, कांटों और ठोकरों से बचने के लिए जूते दिए। सर्दी से कहीं मैं ठिठुर न जाऊँ इस हेतु गर्म कपड़े दिए समिति की और बहुत सी वस्तुएँ मेरी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा थीं। मेरे जीवन में रविवार का विशेष महत्व है। इस दिन समिति विचारगोष्ठी आयोजित करती, एक प्रतिस्पर्धात्मक माहौल देती, जिससे मुझे जीवन-ओज पैदा हुआ। मैं संस्था का सेवक बन चुका था। प्रत्येक अच्छे कर्म के लिए मुझे शाबाशी, प्रोत्साहन दिया गया और गलती के लिए डांट के साथ सुधरने का एक और अवसर। इसी वजह से सन् 2000 में मैं समिति का सर्वश्रेष्ठ कार्यकर्ता चुना गया। अब मैं जीवन का महत्व समझने लगा था। संस्था सहयोग से मैंने एम.डी. कॉलेज से बी.एससी. तो पास कर लिया लेकिन एक बड़ी चिन्ता भविष्य निर्माण की सताने लग गयी थी। मैं MCA में प्रवेश का इच्छुक था। इसकी फीस 36,000 रुपये थी। हालांकि मैंने कुछ प्रवेश परीक्षाएँ पास कर ली थीं। रुपयों के बगैर यह काम असम्भव था। सचिव महोदय माहेश्वरी जी ने मुझे आधा शुल्क जमा कराने को और शेष फीस व खर्च हेतु निश्चित बने रहने को कहा। पिताजी की जी-तोड़ मेहनत रंग लायी। आधी रकम जैसे-तैसे इक्ट्ठी हुई। मेरा दाखिला MCA में हो गया। मुझे महँगी किताबें, रजिस्टर तथा 750 रुपये मासिक किश्त जयपुर में मिलने लगी।समिति समय-समय पर और प्रेरणा देकर मुझमें ललक जीवित रखती। ईश्वर का आशीर्वाद कब फलीभूत हो हम नहीं कह सकते। एक दिन कॉलेज में आयी जर्मनी की बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने मुझे चुना, माता पिता गुरुजन और ईश्वर के आशीर्वाद से मैं आज Technofat Consulting में Software Engineer के पद पर कार्यरत हूँ आज मैं परिवार का भरण पोषण में सक्षम हूँ। मेरा सपना मुझे साकार करना है मैं अपने जैसे कुछ विद्यार्थियों की मदद करना चाहता हूँ। मैं संस्था का तहेदिल से आभारी हूँ मैं सेवा करके इसका कर्ज उतारना चाहता हूँ। संस्था का सहयोग अमृत बन मेरी नसों में दौड़ रहा है और इसी से मुझमें जीवन नजर आ रहा है।
परमपिता परमात्मा मुझे सक्षम बनाएँ ताकि मैं दूसरों के काम आ सकूं और संस्था - मानस-पुत्र बन सकूं।

मेरे जीवन के इंजीनियर

मैं जरनैल सिंह, मारुति सुजूकी इण्डिया लिमिटेड कम्पनी, गुड़गाँव में मैनेजर के पद पर कार्यरत हूँ। सन् 1997 में मैंने दसवीं कक्षा में 84% अंक लेकर रा.उ.मा. विद्यालय, हनुमानगढ़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया था, सभी लोगों ने मुझे इसके बाद काफी प्रोत्साहित किया। सन् 1999 में जब मैंने बारहवीं कक्षा में 87% अंक प्राप्त किये तब भी लोगों ने मुझे जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। मेरे परिवार के लोग घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण काफी चिंतित थे। मेरे पिताजी ने काफी लोगों से सहायता प्राप्त करने की कोशिश की। किसी तरह मेरा एडमिशन जोधपुर के MBM Engg. College में हो गया। परन्तु वहाँ रहकर पढ़ाई करने के लिए मुझे हर माह रुपयों की जरूरत थी जो मेरे परिवार के लिए जुटा पाना संभव नहीं था। बहुत कोशिशों के बाद हमें गंगानगर जिले में काम कर रही विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति एवं प्रो.एस.एस. माहेश्वरी जी के बारे में पता चला। हमने सुना कि वे आर्थिक रूप से कमजोर व मेधावी छात्रों के लिए पूरी तरह से मदद करते हैं। जब हम उनके पास पहुँचे तो उन्होंने हमारी बात सुनी और मदद करने का पक्का आश्वासन दिया। इसके बाद मुझे समिति से अपना हर माह का खर्चा उठाने के लिए मदद मिलनी शुरू हो गई। उनकी निरंतर मदद से मैंने अपनी इंजीनियरिंग के चार साल पूरे किये। इन चार सालों में मुझे समिति का पूरा सहयोग व गाइडेंस मिली जिससे की मैं अपने जीवन में कामयाब बन सका। आज मुझे कार्य करते हुये लगभग दस वर्ष पूरे हो गये हैं। मैंने अपने जीवन में जो भी सफलता प्राप्त की उसमें विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति का बहुत बड़ा योगदान है।इसकी वजह से ही मैं अपने परिवार के लिए बहुत कुछ कर सका। मैं चाहूँगा कि जिस तरह मुझे इस समिति से मदद मिली, मैं भी अन्य लोगों की इसी तरह से मदद कर सकूं जिससे की वे भी अपने जीवन को सफल कर सकें। मैं इस सहयोग के लिए विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति व माहेश्वरी जी का जीवन भर आभारी रहूँगा।

इंजी. जरनैल सिंह
मैनेजर मारुति सुजूकी इण्डिया लि.
गुड़गाँव (हरियाणा)

एक वरदान

आज कागज कलम लेकर संस्था और माहेश्वरी जी के द्वारा मेरे जीवन में किये गये उपकार पर कुछ लिखूं...तो सोचता ही रह गया शब्द ही नहीं मिल रहे..कि इनका मैं किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ। ये ना मिलते तो जाने में कहाँ और किस हाल में होता, मेरा और आर्थिक विसमता का नाता तो बचपन से ही था। कक्षा 8 के बाद शहर आने का साधन नहीं और गांव में आगे शिक्षा नहीं थी अतः मेरे स्कूल के हैडमास्टर श्री जगदीश जी व मेरे चाचाजी के सहयोग ने मुझे आगे पढ़ने में मदद की। मैं 12 वीं कक्षा प्रथम श्रेणी से उतीर्ण करने में सफल रहा लेकिन और आगे की पढ़ाई का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था। तब ईश्वर कृपा से एक पी.टी.आई. सर जो मेरे चाचाजी के परिचित थे, वे मुझे गोल बाजार स्थित चानणराम सतपाल की दुकान पर ले गये उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया और पूर्ण सहयोग का वादा करते हुए मुझे उस महान पुरुष से मिलवाया जिन्हें लोग श्री श्याम सुन्दर माहेश्वरी कहते हैं। इनके बारे में कुछ भी कहने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं हैं। माहेश्वरी जी ने मुझे पुत्रवत दुलार किया और हर प्रकार से सहयोग का भरोसा दिया। मेरे जीवन में अँधेरों से बाहर निकलने की कहानी तो बहुत बड़ी है बस यूं मानिये कि मुझे कुछ महान् व्यक्तियों और इस संस्था ने हाथ पकड़कर कामयाबी का रास्ता दिखाया जिसका मैं आजीवन ऋणी रहूँगा। श्रीमान् माहेश्वरी जी के एक अतिपरिचित श्री प्रदीप जी (सी.ए. साहब) ने मुझे अपने पास पार्ट टाइप कार्य के बहाने मेरी खूब आर्थिक मदद की जिसमें मैं अपना अध्ययन जारी रखने में सफल रहा। श्री माहेश्वरी जी ने मुझे खालसा कॉलेज में प्रवेश दिलवाकर मुझे बी.एस.सी.(जीव विज्ञान) में स्नातक होने तक सब प्रकार से मेरी मदद की और उनके आशीर्वाद से प्रथम श्रेणी से सफल हुआ। बी.एससी. की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात मैं बी.एड. की तैयारी कर ही रहा था। कि तभी प्रभु कृपा से रेडियोग्राफर कोर्स में प्रशिक्षण हेतु मेरा चयन हो गया। इस प्रकार बीकानेर से ये कोर्स मैंने सम्पूर्ण कर लिया और मेरा बीकानेर संभाग में प्रथम और राजस्थान में द्वितीय स्थान रहा।

सुभाष घोड़ेला
वरिष्ठ रेडियोग्राफर
राजकीय जिला चिकित्सालय
श्रीगंगानगर
प्रदेश उपाध्यक्ष राजस्थान रेडियोग्राफर एसोसिएशन, राजस्थान

इसके पश्चात राज्य सरकार ने मुझे सहायक रेडियो ग्राफर के पद पर नियुक्ति भी दे दी। अन्ततः मैं इन सब के आशीर्वाद एवं सहयोग से अपने पैरों पर खड़ा होने में सफल रहा।मुझ जैसे जाने कितने ही परिवारों को इस संस्था और श्री माहेश्वरी जी ने अँधेरा दूर कर रोशन किया है। मुझे अपनाने के बाद तो मेरे पूरे परिवार को ही इन्होंने जैसे अपना परिवार ही बना लिया। मेरे परिवार के हर सदस्य के दिल से यही दुआ निकलती है कि ऐसे महान् पुरुष बार-बार धरती पर आते रहें।

आजीवन ऋणी रहूँगा

मैं एक गरीब परिवार से था। 100 रुपये प्रति माह के किराये पर मैं अपने माता-पिता के साथ रहता था। मेरे पिताजी एक मजदूर थे जो कबाड़ का काम करते थे। प्रतिदिन 30 रुपये आमदनी थी उनकी 1985-87 में। इन परिस्थितियों का सामना करते हुए और सरकार द्वारा लगाई गई स्ट्रीट लाईट की रोशनी में पढ़ कर 1990 में मैंने 80 प्रतिशत मार्क्स के साथ 10 वीं कक्षा में टॉप किया। तब से विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति ने मुझे Adopt किया। PMT में Selection से लेकर MBBS (डाक्टर बनने तक) का सारा खर्चा समिति ने वहन किया तथा मेरा मार्ग दर्शन भी करते रहे। समिति की उदारता, सहृदयता और आत्मीयता का ही परिणाम है कि मैं समाज में चिकित्सक जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त हुआ और जीवन संगिनी के रुप में भी मुझे मेरे अनुरुप ही चिकित्सिक मिली जिससे हम संयुक्त रुप से समाज को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुँचाने में सक्षम बनें। आज मैं अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहा हूँ। ये सब समिति के अमूल्य सहयोग का ही फल है ।मैं इसके लिए विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति का तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।

डॉ. तिलकराज
नोखा, बीकानेर

बेसहारों का सहारा है समिति

विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति ने मेरी अँधकारमय जिन्दगी में उजाला लाने में अहम भूमिका निभाई है। मैं बिलकुल निर्धन परिवार से हूँ । मेरे पिताजी सन् 1998 में जब मैं प्रथम कक्षा में था चल बसे जिससे हमारा परिवार पूरी तरह टूट गया था। गाँव के सरकारी स्कूल में 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की जिसकी फीस मेरी अध्यापिका देती थी। मेरे बड़े भैया को कक्षा 8 वीं में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी व मेहनत मजदूरी करके मुझे पढ़ाते रहे। 10 वीं कक्षा की छुट्टियों में मैंने न्यूज पेपर बाँटकर व गाँव में एक दुकान पर काम करके मेरे लिए साइकिल खरीदी और पदमपुर शहर के सरकारी स्कूल में प्रवेश लिया। मैंने 10 वीं कक्षा में गाँव के स्कूल में 69 प्रतिशत व 12 वीं कक्षा में पदमपुर के स्कूल में नॉन मेडीकल (पी.सी.एम.) में 76.77 प्रतिशत अंक प्राप्त किये।
11वीं एवं 12वीं में मैंने खुद की मेहनत से ही विद्यालय शुल्क अदा की। इसके बाद मैं बी.टेक. करना चाहता था लेकिन घर पर RPET का Application Form खरीदने के पैसे भी नहीं थे इसलिए मैंने Polytechnic Diploma करने का फैसला लिया। Polytechnic प्रथम वर्ष के Annual Function पर मैंने मुख्य अतिथि के रूप में पधारे प्रो.श्याम सुन्दर माहेश्वरी जी का भाषण सुना एवं विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के बारे में जाना। समिति ने मुझे जाँच-परख के बाद गोद ले लिया। इसके बाद का मेरी शिक्षा का सारा खर्च समिति उठाती रही है।
अगर समिति मेरा साथ नहीं देती तो शायद आज मैं किसी जगह मजदूरी कर रहा होता। समिति की वजह से मुझे Required Standard Books पढ़ने को भी मिली तथा मैंने District Top किया एवं आज मैं L&T Consturction Co. में जॉब कर रहा हूँ। जॉब के साथ-साथ मैं Non-College Study AMIE भी कर रहा हूँ।
मैं पूरी ज़िन्दगी समिति का कर्ज नहीं चुका सकता। मैं हमेशा समिति से जुड़ा रहना चाहता हूँ।

इंजी. रोहित कुमार
एल एण्ड टी कन्सट्रक्शन
दहेज वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट
शाखा भरूच, गुजरात

धन्य, धन्य और धन्य

संस्था ने मेरे लिए जो किया उसका बदला चुकाने का सामर्थ्य मुझ में नहीं है फिर भी मैं समिति को जीवन भर अपना योगदान देना चाहूँगा। अपनी कमाई का कुछ हिस्सा संस्था को अर्पित कर हमेशा उनका एहसान याद रखना चाहूँगा। मैं समाज के सक्षम वर्ग से भी कहना चाहूंगा कि दान वहाँ देना चाहिए जहाँ इसका सदुपयोग हो, आपके सहयोग से जरूरतमंद बच्चों का भविष्य संवर सके।
मैंने मेरी कहानी का नाम 'पथिक' रखा है लेकिन वो पथिक मैं नहीं हूँ मैं तो थक-हार कर बैठ गया था मुझे तो हाथ पकड़कर संस्था ने ही चलना सिखाया और इस लायक बना दिया कि मैं सम्मान से जीवन व्यतीत कर सकें। सच में माहेश्वरी सर हैं वो 'पथिक' जो चलते ही रहते हैं, संस्था के लिए दिन-रात, सर्दी-गर्मी की परवाह किये बिना ।बस मदद के लिए बढ़ता रहता है उनका हर कदम ।धन्य हैं माहेश्वरी जी, धन्य है उनका प्रसास और धन्य है उनका पथ। आज भी वे हम सब से कहते हैं बेटा तुम अपनी मंजिल पर पहुँचो और आराम करो, मुझे अभी तुम्हारे जैसे थके हुए लोगों को उनकी मंजिल तक पहुँचाना है।
संस्था से जुड़े सभी महानुभाओं को मेरा सम्मान पूर्वक प्रणाम।

गुरप्रीत सिंह
प्रबंधक
पंजाब एण्ड सिंध बैंक रायकोट, लुधियाना(पंजाब)

आशा की आरिवरी किरण

कितने मुश्किलों भरे थे वो दिन जब 2007 में बी.एड. कोर्स के लिए मेरा चयन हुआ लेकिन फीस की राशि 19600/-रु. मेरी कल्पना और पहुँच से बहुत दूर की बात थी। ऐसा कौन सा परिचित और रिश्तेदार होगा जहाँ मैंने मदद के लिए दरवाजा ना खटखटाया हो? लेकिन परिणाम शून्य रहा।यूं तो प्रभु कृपा से 11 वीं कक्षा से ही मैं श्री माहेश्वरी जी और संस्था से जुड़ गया था, और तब से अब तक मैं शिक्षा के इस पावन मन्दिर का सेवक हूँ। मुझे हर कदम पर समिति ने सम्पूर्ण सहयोग दिया लेकिन बी.एड. की फीस जो एक बड़ी राशि थी नहीं जुटा पाया तो मेरे लिए आशा की आखिरी किरण थे। श्री माहेश्वरी जी । उनका दरवाजा खटखटाते ही मेरे लिए जैसे दया और प्रेम का दरवाजा खुल गया हो। बस फिर क्या था मेरी फीस की व्यवस्था हो गई जिसके अभाव में मैं आज अध्यापक नहीं, शायद एक निराश मजदूर होता।
हर कदम पर संस्था और ये महान् पुरुष मेरे साथ खड़े नजर आये । इनके सहयोग और आशीर्वाद से आज मैं सम्मान पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूँ और शिक्षा जैसे पावन कार्य का एक हिस्सा बनकर अपने आप को धन्य मानता हूँ। आज मेरे जैसे जाने कितने लोग हैं जिन्हें आर्थिक मदद और उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है उन सबकी उचित मदद करने हेतु समिति आज भी तत्पर है। परमात्मा से यही प्रार्थना है कि समिति लगातार सफलता के नये आयाम स्थापित करे। वास्तव में संस्था ने मुझे जीवन प्रदान किया है।
मेरी कोई हस्ती है गर, तो आप की कृपा से।
जीता हूँ सम्मान से गर, तो आप की कृपा से ।।

सतपाल सिंह
एम.ए., बी.एड. शिक्षक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय
36 पी.एस. रायसिंहनगर,श्रीगंगानगर

पुरस्कार प्राप्त विद्यार्थियों के समिति के प्रति विचार

साधनहीन प्रतिभाओं का सम्बल

विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के बारे में मुझे पहली बार तब पता चला जब मुझे 1990 में बारहवीं सीबीएसई में भौतिक शास्त्र में 100 % अंक प्राप्त करने पर सम्मानित किया गया। उस समय मै BITS पिलानी में बी.ए. (Mech.) में अध्यनरत था। मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कालांतर में शिक्षा प्राप्त कर मैं अमेरिका जाकर बस गया, लेकिन मुझे इस संस्था की गतिविधियों के बारे में समय-समय पर जानकारी मिलती रही।
मैं स्वयं अपनी पत्नी मोनिका के साथ सन् 2001 में इस संस्था को देखने आया । मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि यह संस्था किस तरह अपने सीमित साधनों के जरिये अभावग्रस्त बच्चों को जो धनाभाव के कारण आगे पढ़ने में असमर्थ हैं, उनको हर सम्भव सहायता करके आगे पढ़ने-बढ़ने में सहायता करती है। बिना किसी जाति, धर्म या लिंग के भेदभाव के सिर्फ योग्यता के आधार पर।
यही नहीं उन बच्चों को जो जिनके माता-पिता कोढ़ ग्रस्त हैं या भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं, उन्हें भी नियमित रूप से पढ़ाकर, रोजगार सम्बन्धी शिक्षा देकर, स्वावलम्बी बनाने के कोशिश करती है।
हमेशा देश को ऐसी बहुत सारी संस्थाओं की जरूरत है।

साथ ही श्री माहेश्वरी जी जैसे समाजसेवी भी देश जी जरूरत है। समाज को जोड़ते हैं और शिक्षावान् बनाते है। ये अभावग्रस्त परन्तु प्रतिभावान् छात्रों को हर तरह से अपनी ज़िन्दगी संवारने का मौक प्रदान करते हैं।
इस संस्था को हमारा शत-शत नमन । हमारा सहयोग सदा इस समिति को समर्पित है।

इंजी.विक्रांत कोठारी

हनोवर मेरीलेण्ड, अमेरिका

प्रेरणा स्रोत

शिक्षा एक अद्भुत खजाना है। यह उपजाऊ जमीन में डाले गए उस बीज की तरह है जो सूर्य का उचित प्रकाश, पानी व हवा मिलने पर एक बड़े पेड़ के रूप में विकसित होकर ताजे फल, छाया एवं स्वच्छ हवा प्रदान करता है।
मैं लगभग 23 वर्षों से रसायन विज्ञान पढ़ा रही हूँ। विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति द्वारा जब मुझे 1989 में एम. एससी. परीक्षा में विश्वविद्यालय स्तर पर प्रथम आने पर पुरस्कार मिलना था, उस समय मैं चण्डीगढ़ में एम. फिल. में अध्ययनरत थी। मेरे लिए वह दिन हर्ष से भरा था जिसकी याद आज भी मेरे मन में फूलों की भाँति ताजा है। मैं स्वयं तो पुरस्कार लेने नहीं जा पायी किन्तु आज 25 वर्ष बाद एक माँ की आंतरिक खुशी सहज ही महसूस कर सकती हूँ जो तब मेरी माताजी को प्राप्त हुई थी जब उन्होंने मेरा पुरस्कार प्राप्त किया था | पुरस्कार सदैव व्यक्ति को आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करते हैं। ये पुरस्कार ही थे जिन्होंने मेरे बच्चों में भी एक ऊर्जा जगाई और उन्होंने अपने तन-मन से परिश्रम कर मेरे से कहीं अधिक पुरस्कार प्राप्त किये।
शिक्षा एक ऐसा तोहफा है जिसे चुराया नहीं जा सकता। सभी के लिए अनिवार्य शिक्षा UNESCO का उद्देश्य है ताकि सभी बच्चे की सीखने की जरूरत पूरी हो सके। यही उद्देश्य लेकर आज विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति अपनी रजत जयंती मना रही है जिसने इन वर्षों में न जाने कितने चिकित्सक, अभियंता, जज एवं शिक्षक बना दिये। ये वे मेधावी बच्चे थे जो साधन सम्पन्न नहीं थे लेकिन समिति ने उनके शिक्षा के अधिकार को पहचाना तथा उनकी मदद भी की।
शिक्षा केवल अधिकार ही नहीं है बल्कि मानव विकास के लिए पासपोर्ट है जो अनेक बन्द दरवाजे खोलता है तथा अवसरों एव स्वतंत्रता को बढ़ाता है। शिक्षा लोकतंत्र एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ ही स्वास्थ्य में सुधार और गरीबी उन्मूलन के दिशा में एक शक्तिशाली हथियार है। शिक्षा का जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव है जो सम्मान एवं मान्यता प्रदान करने में मददगार होता है।
शिक्षा के महत्त्व को प्रत्येक व्यक्ति के लिए नकारा नहीं जा सकता, जो विद्यार्थी प्रतिभावान तो है लेकिन सुविधाविहीन है क्योंकि समय उनके साथ नहीं है, वे स्वयं के बूते पर अध्ययन करने में सक्षम नहीं है लेकिन समिति ऐसे विद्यार्थियों का हाथ थामकर उन्हें मंजिल पर पहुँचाने को तैयार है। मैं अपने पूरे परिवार की ओर से पद्मश्री प्रो.श्याम सुन्दर माहेश्वरी,(भारत सरकार से सम्मानित समाज) को नमन करती हूँ एवं समिति के चहुंमुखी विकास की कामना करती हूँ।

डॉ. गुरप्रीत कौर

सेवानिवृत्त सह प्राध्यापक, जयपुर